अथाई रोड राधा कृष्ण मंदिर के पीछे, आम चौपरा, जबलपुर नाका दमोह
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प्रबोधिनी फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी इन छोटे व्यवसायों को भी एक प्लेटफार्म प्रदान कर रहा है।

भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान हैं. ये उद्योग बड़े उद्योगों की तुलना में न्यूनतम लागत पर अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में न केवल अहम भूमिका निभाते है बल्कि ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्र के औद्योगिकीकरण में भी सहायता करते है. जिससे क्षेत्रीय असंतुलन में कमी होती है और राष्ट्रीय आय व धन का समान वितरण सुनिश्चित होता हैं.
कुटीर उद्योग की श्रेणी में कई छोटे उद्योग आते है जिन्हे कृषक अपनी सहायक कमाई के लिए आरम्भ करता है अथवा एक विशेष जाति परम्परागत रूप से सदियों ऐसे करती आई है जैसे लुहारी कर्म, बढ़ई का काम, कुम्हार का काम, कपड़े बुनाई, जूते गलीचे आदि का निर्माण शामिल हैं.

हमारे पास हर प्राकार के कृषि संबंधित जानकारी, उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद, साथ ही अन्य सभी प्रकार के घर के बने खाद्य वस्तुओं जैसे की घी, दूध, पापड़, बड़ी, आचार इत्यादि उपलब्ध है।

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. कृषि और सहायक क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-20 प्रतिशत का योगदान देते हैं, जबकि लगभग 60 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं.
प्रबोधिनी फार्मर्स प्रोड्यूसर्स भारत मै हो रहे कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने और उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों को देश विदेश तक पहुंचाने की एक पहल है।

कृषि के प्रकार

  • मिश्रित कृषि – कृषि एवं पशुपालन एक साथ साथ करना।
  • शुष्क या बारानी कृषि- शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल का सुनियोजित संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व शीघ्र पकने वाली फसलों की कृषि करना।
  • झुमिंग कृषि – पहाड़ी व वन क्षेत्रों में वन एवं पेड़ पौधों को जलाकर जमीन साफ़ करना तथा उस पर 2-3 वर्ष खेती करने के पश्चात उसे छोड़कर किसी अन्य स्थान पर इसी तरह कृषि कार्य करना।
  • समोच्च कृषि – पहाड़ी क्षेत्रों में समस्त कृषि कार्य और फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत करना ताकि वर्षा से होने वाले मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके, समोच्च कृषि कहलाती हैं।
  • पट्टीदार खेती – ढालू भूमि में मृदा क्षरण को कम करने वाली तथा अन्य फसलों को एक के बाद एक पट्टियों में ढाल के विपरीत इस प्रकार बोना कि मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके ।
  • कृषि वानिकी – कृषि के साथ साथ फसल चक्र में पेड़ों, बागवानी व झाड़ियों की खेती कर फसल व चारा उत्पादित करना.
  • रोपण कृषि एक विशेष प्रकार की खेती जिसमे गन्ना, मिर्च, केला कपास आदि बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं।
  • रिले क्रोपिंग – एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें लेना।

भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान हैं. ये उद्योग बड़े उद्योगों की तुलना में न्यूनतम लागत पर अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में न केवल अहम भूमिका निभाते है बल्कि ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्र के औद्योगिकीकरण में भी सहायता करते है. जिससे क्षेत्रीय असंतुलन में कमी होती है और राष्ट्रीय आय व धन का समान वितरण सुनिश्चित होता हैं.
कुटीर उद्योग की श्रेणी में कई छोटे उद्योग आते है जिन्हे कृषक अपनी सहायक कमाई के लिए आरम्भ करता है अथवा एक विशेष जाति परम्परागत रूप से सदियों ऐसे करती आई है जैसे लुहारी कर्म, बढ़ई का काम, कुम्हार का काम, कपड़े बुनाई, जूते गलीचे आदि का निर्माण शामिल हैं.

कुटीर उद्योगों का महत्व।

  • रोजगार में वृद्धि।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुरूप।
  • कुटीर उद्योगों का महत्व।
  • कृषि पर जनसंख्या के भार में कमी।
  • परम्परागत एवं कलात्मक उद्योगों को संरक्षण।
  • कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता।

प्रबोधिनी फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी इन छोटे व्यवसायों को भी एक प्लेटफार्म प्रदान कर रहा है। इसके माध्यम से हम गांव की औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रहे है, जिससे हमारे समाज का सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास हो।
हमारे पास हर प्राकार के कृषि संबंधित जानकारी, उनके द्वारा बनाए गए उत्पाद, साथ ही अन्य सभी प्रकार के घर के बने खाद्य वस्तुओं जैसे की घी, दूध, पापड़, बड़ी, आचार इत्यादि उपलब्ध है।